अनूप के बड़े भाई की शादी थी, और पूरे गाँव में उसकी धूम मची हुई थी। शादी के हर छोटे-बड़े काम में परिवार का हर सदस्य व्यस्त था। लेकिन अनूप के मन में कुछ उलझनें भी थीं। वह सोच रहा था कि उसकी ज़िन्दगी में इस वक्त सबसे बड़ी खुशी क्या है? क्या वह भी शादी करना चाहता है? या फिर इस शादी के मौके पर, उसे कुछ और ही महसूस हो रहा था, कुछ और ही तलाश थी। उसने आज तक शादी के बारे में कभी ज्यादा नहीं सोचा था, लेकिन आज कुछ अलग था। बड़े भाई की शादी के साथ-साथ, इस मौके पर गाँव के लोग आपस में मिलते-जुलते हुए एक-दूसरे से बातें करते और अफवाहें फैलाते, जो कुछ ही समय में पूरे गाँव में चर्चा का विषय बन जातीं।
अनूप के भाई की नौकरी एयरफोर्स में थी, इसलिए शादी के मौके पर दहेज की बातों का भी बाज़ार गर्म था। समाज में हर कोई यही कहता था कि अगर लड़का एयरफोर्स में है, तो दहेज का कोई सवाल ही नहीं है। लेकिन अनूप के मन में ये सवाल था कि ये सारी चीज़ें क्यों ज़रूरी हो गईं? क्या किसी की मेहनत और ख्याति का असली मतलब सिर्फ पैसों और उपहारों से है?
गाँव में शादी के दिन की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। हर घर में हलचल थी, और हर आदमी की आँखों में उत्साह और खुशी की चमक थी। दुल्हन के घर में होने वाले डांस प्रोग्राम की चर्चा सब जगह थी। वहाँ के लोग इसे एक बड़ी चीज़ समझते थे, क्योंकि डांस प्रोग्राम का आयोजन पहले कभी नहीं हुआ था। गाँव में पुराने रीति-रिवाजों के अलावा, हर कोई यह जानता था कि इस शादी में कुछ खास होगा। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, हर किसी के चेहरे पर एक अलग ही जोश था। लेकिन अनूप के मन में कुछ था, जो उसे भीतर से परेशान कर रहा था।
दूसरे ही दिन शादी का दिन आ गया। बारात में डांस प्रोग्राम के बारे में बात की जा रही थी। यह शादी का सबसे अहम हिस्सा बन चुका था। डांस प्रोग्राम की तैयारी पूरी हो चुकी थी और बारात की जलजली देर रात तक इस छोटे से गाँव में गूंजने वाली थी। जैसे-जैसे शादी का दिन नजदीक आ रहा था, अनूप के दिल में अनजानी आशंका बढ़ने लगी थी।
बारात के साथ डांस का आयोजन हुआ। यह एक अनूठा और भव्य आयोजन था, जो हर किसी के दिल में बस गया था। सभी लोग उत्साहित थे और गानों की धुनों पर झूम रहे थे। लेकिन यहाँ पर जो सबसे खास बात थी, वह थी डिंपल। डिंपल, जो एक नर्तकी थी, उसकी खूबसूरती और डांस ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया था। उसकी उम्र लगभग 21 साल की रही होगी और वह न केवल सुंदर थी, बल्कि उसकी डांस की कला में भी कुछ ऐसा था कि हर कोई उसकी ओर खींचा चला जाता।
डिंपल का नाम सुनते ही अनूप के मन में कुछ अजीब सी हलचल होती। यह नाम उसे लगातार विचलित कर रहा था। क्या उसे सच में कोई गहरी भावना है डिंपल के लिए? क्या यह एक सामान्य आकर्षण था, या फिर कुछ और था, जो वह खुद भी समझ नहीं पा रहा था?
बारात के दौरान, लोग न केवल डिंपल के डांस का आनंद ले रहे थे, बल्कि उसके लिए कमेंट्स भी करने लगे थे। लोग बार-बार उसका नाम पुकारते और उसे पैसे देते। “डिंपल डार्लिंग को बुलाओ, मस्त वाली आइटम गर्ल डिंपल को बुलाओ!” यह शब्द हर किसी के मुँह से निकल रहे थे। जो बात अनूप को चुभ रही थी, वह थी यह गंदी टिप्पणियाँ। क्या डिंपल सिर्फ एक डांस करने वाली लड़की ही थी? क्या उसे उसकी कला और पहचान से अलग सिर्फ एक ‘आइटम’ के रूप में देखा जा रहा था?
अचानक, अनूप को यह सोचने का समय मिला कि आखिर क्यों लोग डिंपल को इस तरह से देख रहे हैं। क्यों उसकी मेहनत और कला को इस समाज ने एक वस्तु की तरह कम कर दिया था?
समाज का यह असंवेदनशील नजरिया अनूप के दिल को चीरने लगा था। वह सोचना चाहता था कि क्या इस समाज को कभी यह समझ में आएगा कि डिंपल जैसे लोग भी सम्मान के हकदार हैं? क्या समाज को कभी यह समझ में आएगा कि डिंपल भी एक इंसान है, उसे भी सम्मान की ज़िन्दगी जीने का हक है? लेकिन यह सवाल उसके मन में उठता और फिर दब जाता, क्योंकि वह जानता था कि समाज की मानसिकता इतनी जल्दी नहीं बदलेगी।
लेकिन वह एक बात समझ चुका था—डिंपल को सिर्फ एक नर्तकी नहीं, बल्कि एक पूरी इंसान के रूप में देखा जाना चाहिए था। और यही वह फैसला था, जिसने अनूप के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया।
आखिरकार, वह दिन आ ही गया जब अनूप ने ठान लिया कि वह डिंपल से मिलकर उसे कुछ बताने जाएगा। शादी की सारी रौनक समाप्त हो चुकी थी, लेकिन उसके मन में डिंपल के प्रति जो आकर्षण था, वह लगातार बढ़ता जा रहा था। वह अब समझने लगा था कि इस समाज में डिंपल जैसे लड़कियों को हमेशा एक बुरे नजरिए से क्यों देखा जाता है। क्या उनकी मेहनत और कला को देखकर भी हम उन्हें सम्मान नहीं दे सकते? क्या उनका यह पेशा उन्हें केवल एक वस्तु बना कर छोड़ देता है?
शादी के बाद, अगले दिन अनूप ने मन में एक दृढ़ संकल्प किया और डिंपल के पास जाने का फैसला किया। वह यह जानता था कि यह आसान नहीं होगा, लेकिन वह उसे अपने दिल की बात कहे बिना नहीं रह सकता था। जब वह डिंपल के पास पहुँचा, तो वह थोड़ी घबराया हुआ था। क्या वह उसे सही तरीके से समझा पाएगा? क्या डिंपल उसे समझ पाएगी? ये सारे सवाल उसके दिमाग में दौड़ रहे थे।
वह एक ग्राहक की तरह कमरे में घुसा और डिंपल से मिलने की इच्छा जाहिर की। डिंपल ने उसे बहुत ध्यान से देखा और शायद उसकी पहचान नहीं की थी। अनूप ने उस वक्त सिर्फ पैसे दिए, क्योंकि वह जानता था कि डिंपल को पैसे से ही कोई मतलब होगा, और वह अपनी बात कह पाएगा।
जब डिंपल कमरे में आई, तो उसने जैसे ही कपड़े उतारने शुरू किए, अनूप ने उसे रुकने के लिए कहा। उसकी आवाज़ में एक अजीब सी दृढ़ता थी, जैसे वह न केवल डिंपल से मिलना चाहता हो, बल्कि उससे कुछ और भी कहने की इच्छा रखता हो।
"डिंपल, तुम आज ऐसा नहीं करोगी," अनूप ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कहा। "मैं तुमसे सिर्फ यह कहने आया हूँ कि मुझे तुम्हारा जिस्म नहीं चाहिए, मुझे सिर्फ तुम चाहिए। मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे साथ अपना जीवन बिताओ।"
डिंपल चौंकी। उसने सोचा, "यह शख्स मुझे क्यों समझाने की कोशिश कर रहा है? क्या वह सच में मुझे अपनी पत्नी बनाना चाहता है?"
डिंपल ने अनूप से कहा, "आप कौन हैं, और आप क्या चाहते हैं? मुझे कोई जरूरत नहीं है, जो आप सोच रहे हैं।"
अनूप ने कहा, "मैं तुम्हारे लिए जीवन जीने की एक नई राह चाहता हूँ। क्या तुम कभी यह नहीं सोचतीं कि तुम भी किसी का घर बसाने लायक हो, तुम्हारा भी जीने का हक है, तुम भी अपनी मर्जी से जीवन जी सकती हो। तुम मेरी जिंदगी का हिस्सा बन सकती हो।"
डिंपल चुपचाप सुन रही थी। उसकी आँखों में आशंका और डर था। "क्या तुम सच में यह चाहोगे?" डिंपल ने पूछा, "क्या तुम मेरे जैसा एक नाचने वाली लड़की को अपना जीवन साथी बना सकोगे?"
अनूप ने उसकी आँखों में देख कर कहा, "तुम किसी भी परिवार का हिस्सा बन सकती हो। तुम्हारी कला और मेहनत ही तुम्हारा सबसे बड़ा अधिकार है। और तुम्हें जीने का हक है। तुम्हें अपना जीवन जीने का हक है, ठीक वैसे ही जैसे किसी अन्य लड़की को होता है।"
डिंपल की आँखों में आँसू थे। उसे अनूप की बातों में कोई छल नहीं दिखाई दे रहा था। वह सच में उसके बारे में सोच रहा था। उसने धीरे से कहा, "आप मेरी स्थिति समझ नहीं सकते। मुझे लगता है कि कोई भी मुझे कभी स्वीकार नहीं करेगा।"
अनूप ने उसे समझाते हुए कहा, "मैं यहाँ तुमसे सिर्फ एक बात करने आया हूँ, डिंपल। मैं जानता हूँ कि तुम्हारी दुनिया और हमारी दुनिया अलग है, लेकिन मैं यह चाहता हूँ कि तुम एक नई शुरुआत करो। मैं तुम्हें अपनी जिंदगी में जगह देने के लिए तैयार हूँ, अगर तुम भी तैयार हो।"
डिंपल ने अब अनूप के चेहरे को गौर से देखा। उसे यह महसूस हुआ कि यह आदमी सचमुच उससे प्यार करता था, और वह किसी शर्त के बिना उसे स्वीकार करने के लिए तैयार था। उसकी आंखों में वह लिजलिजा डर अब कम हो चुका था, और उसकी जगह एक नई उम्मीद ने ले ली थी।
"तुम सच में मुझसे शादी करना चाहते हो?" डिंपल ने आँखों में आँसू भरकर पूछा।
अनूप ने कहा, "हां, डिंपल, मुझे तुम्हारा साथ चाहिए, तुम्हारे बिना मेरी ज़िन्दगी अधूरी है। मैं तुम्हें बिना किसी शर्त के स्वीकार करता हूँ। मैं तुमसे सिर्फ यह एक सवाल पूछता हूँ, क्या तुम भी मुझे अपना जीवन साथी मानोगी?"
यह सुनकर डिंपल चुप हो गई। उसकी आँखों में अनजाने डर के साथ-साथ एक नई उम्मीद भी थी। वह शायद अब यह समझने लगी थी कि समाज की कट्टरता और अपने सपनों को जीने की दिशा अलग हो सकती है।
"ठीक है," डिंपल ने धीमे स्वर में कहा, "अगर तुम सच में मुझे अपना जीवन साथी बनाना चाहते हो, तो मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूं।"
यह एक छोटा सा वादा था, लेकिन उस वादे में भविष्य की पूरी तस्वीर छिपी हुई थी। एक ऐसा भविष्य, जहां डिंपल भी सम्मान से जी सकती थी, और अनूप के साथ एक नई शुरुआत कर सकती थी।
शादी के बाद के कुछ दिन अनूप के लिए बहुत ही उलझन भरे थे। उसकी सोच ने उसे लगातार परेशान किया था। डिंपल के प्रति उसकी बढ़ती आकर्षण और सच्चाई की खोज में उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। क्या वह सही कर रहा था? क्या समाज की बनाई छवि को बदल पाना सचमुच इतना आसान था? क्या वह अपनी ज़िन्दगी और अपनी भावनाओं के साथ दूसरों की विचारधाराओं से टकरा सकता था?
उसे यह सोचते हुए बहुत समय लग रहा था कि समाज का यह फैसला कैसे बदल सकता था कि एक लड़की, जो अपने जीवन को एक कला के रूप में जीती है, उसे सम्मान का हक नहीं है। डिंपल जैसी लड़कियों को केवल एक नजर से देखा जाता है - जो उनका काम होता है, वह समाज में केवल एक व्यापार की तरह माना जाता है। क्यों? क्या उनका कला और मेहनत किसी इज्जत के लायक नहीं हैं?
डिंपल भी इस सब पर लगातार सोच रही थी। अब, जब अनूप ने उसे अपने जीवन साथी के रूप में स्वीकार किया था, तो उसके मन में एक नई उम्मीद जागी थी, लेकिन साथ ही, डर भी था। क्या उसकी ये चाहत सचमुच पूरी हो सकती है? क्या अनूप उसे कभी अपने परिवार में स्वीकार करेगा? क्या समाज, जो उसे हमेशा एक बुरे नजर से देखता था, कभी उसे सम्मान देगा?
लेकिन एक बात डिंपल को अच्छे से समझ में आ चुकी थी - उसे अब अपने आत्म-सम्मान के लिए लड़ना था। अनूप के इस कदम ने उसे प्रेरित किया था, कि शायद यह समय था, जब उसे खुद के लिए कुछ करना चाहिए। वह यह सोचने लगी कि क्या वह समाज के उन सारे विचारों को तोड़ पाएगी, जो उसे एक वस्तु की तरह देखने के लिए तैयार थे। क्या वह सच में अपना जीवन उस तरीके से जी सकती थी, जैसा वह चाहती थी?
अनूप की स्थिति भी कहीं न कहीं उथल-पुथल में थी। शादी के बाद के कुछ दिन वह लगातार डिंपल से जुड़ी भावनाओं और अपने निर्णयों पर विचार करता रहा। वह जानता था कि अगर उसे अपनी भावनाओं को डिंपल तक पहुँचाना है, तो उसे अपनी पूरी सोच को बदलना होगा। उसे समझना था कि यह सिर्फ डिंपल का नहीं, बल्कि समाज की पूरी सोच का मुद्दा है।
क्या उसे अपनी ज़िन्दगी में डिंपल को स्वीकार करने के लिए इस समाज के तमाम बंधनों को तोड़ने के लिए तैयार होना चाहिए? क्या उसके परिवार को भी इसके लिए तैयार किया जा सकता है? उसने खुद से सवाल किया, "क्या मुझे डिंपल के साथ रहने का हक मिलेगा?" उसके मन में यह सवाल बार-बार घुम रहा था। वह अपने परिवार से डरता था, क्योंकि वह जानता था कि यह निर्णय उनका समर्थन नहीं मिलेगा।
लेकिन एक ओर बात थी जो उसे हमेशा उत्साहित करती थी - यह कि वह डिंपल से प्यार करता था। वह उसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना चाहता था। वह जानता था कि उसकी यह इच्छाएं एक सामाजिक बदलाव का हिस्सा हो सकती हैं। अगर वह डिंपल को अपना सकता है, तो शायद वह समाज को यह दिखा सके कि किसी की कला या पेशे के कारण उसे हिकारत की नज़र से नहीं देखा जा सकता। यह समाज का दोष नहीं था, बल्कि समाज की सोच का था, जिसे बदलने की जरूरत थी।
अंततः, अनूप ने अपने परिवार से इस विषय पर बात करने का फैसला किया। उसे पहले से ही डर था कि परिवार का रुख क्या होगा। उसकी माँ-बाप ने हमेशा उसे समाज के मुताबिक चलने की सलाह दी थी। यह सच था कि उनका दृष्टिकोण थोड़ा पारंपरिक था, और उनके लिए डिंपल जैसी लड़की को अपने घर में जगह देना एक बड़ा बदलाव था। लेकिन अनूप ने ठान लिया था कि वह उनका विचार बदलकर रहेगा। वह इस बार न केवल अपने परिवार से, बल्कि पूरे समाज से भी लड़ने के लिए तैयार था।
उसने अपनी मां से यह बात की, "माँ, डिंपल मेरी ज़िन्दगी का हिस्सा बन सकती है। मैं चाहता हूँ कि तुम उसे अपनाओ।"
माँ ने नाराज़गी और चिंता के साथ कहा, "तुम क्या कह रहे हो? डिंपल जैसी लड़की? तुम नहीं समझ रहे हो, बेटा। समाज क्या कहेगा?"
लेकिन अनूप ने उन्हें समझाया, "माँ, समाज को मैं यह दिखा सकता हूँ कि कोई भी लड़की, चाहे वह डांस करती हो, उसे इज्जत से जीने का हक है। हमें उनकी कला को सम्मान देना चाहिए, ना कि उन्हें घृणा की नज़र से देखना चाहिए।"
माँ चुप रही, लेकिन उसके चेहरे पर चिंता साफ दिख रही थी। वहीं, पिताजी ने भी अपनी बात रखी, "तुम जो कह रहे हो, वह शायद इस समाज में पचा नहीं पाएगा। इस देश में आज भी लोग पुराने विचारों से बंधे हुए हैं।"
लेकिन अनूप ने किसी की नहीं सुनी। वह डिंपल को अपने परिवार में लाने के लिए तैयार था। और कुछ दिनों बाद, उसने डिंपल को साथ लेकर अपनी मां और पिताजी से मिलवाया। वह जानता था कि इस क्षण में उसकी पूरी ज़िन्दगी बदलने वाली थी।
जैसे ही डिंपल घर में आई, सभी की निगाहें उस पर थी। वह एक शाही सजावट में नहीं थी, ना ही कोई महंगी ड्रेस पहने हुए थी, वह सिर्फ अपने दिल और आत्म-सम्मान के साथ आई थी। सभी ने उसे घूरते हुए देखा। कुछ ने चुपके से बातें की, कुछ ने हिकारत से नजरें घुमा दीं। लेकिन डिंपल को अब कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसने महसूस किया कि वह आज अपने ही हक में खड़ी थी, और यही उसके लिए सबसे बड़ी जीत थी।
अनूप ने अपने परिवार को समझाया, "यह वह लड़की है, जिसे मैं अपने जीवन में चाहता हूँ। मैं उसे किसी भी शर्त पर अपनाने के लिए तैयार हूँ। वह मेरे साथ बराबरी पर खड़ी है, और मैं उसका सम्मान करता हूँ।"
कुछ दिन बाद, उनके परिवार ने उन्हें स्वीकार करना शुरू किया। धीरे-धीरे, डिंपल ने अपने आत्म-सम्मान को फिर से पाया। वह अब एक ऐसी महिला थी, जिसने न केवल अपनी कला को, बल्कि अपनी पहचान और सम्मान को भी वापस लिया था।
आखिरकार, डिंपल और अनूप ने शादी की। दोनों ने समाज के उन झूठे बंधनों को तोड़ा और अपने प्यार को अपनी पहचान दी। यह शादी न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक सशक्त संदेश था – कि हर इंसान को जीने का हक है, और किसी को भी अपने सपनों को पूरा करने के लिए शर्मिंदा नहीं होना चाहिए।